बिच्छुओं का इलाज नहीं जानते, सांपों को बांटते हैं दवा
इन्द्र सिंह थापा
एक अत्यंत आश्चर्यजनक खबर है। टॉम और जेरी में जल्द ही सुलह होने वाली है। सुलह के मसौदे के अनुसार जेरीटॉम को तंग नहीं करेगा और टॉम जेरी को अपना निवाला नहीं बनाएगा।
अत्यंत विरोधाभासी ही नहीं असंभव सी दिखने वाली बात, जिस पर कोई बुध्दिमान तो क्या बच्चा भी विश्वास न करे? लेकिन हमारे आदरणीय व परमपूजनीय प्रधानमंत्री मनमोहन जी इस प्राकृतिक नियम को ही बदलने पर अमादा हैं। होते भी क्यों न डाक्टर जो ठहरे! भई! सुना है आजकर वो फिर से पीएचडी कर रहे हैं। सुनकर थोडा ताजुब तो जरूर हुआ लेकिन इससे बडा अजूबा यह है कि इस बार उन्होंने अपना विषय बदल दिया है। देश की माली हालत को सुधारते-सुधारते तो वो सठिया गए। गोया अब उन्होंने धूर्तानंदों को सुधारने व उनसे दोस्ती करने के गुर सीख लिए हैं।
सुना है आजकल उनकी दोस्ती भयंकर विषैले सांपों से हो गई है। सांप भी साहब ऐसे कि डंक मारे तो कोई पानी न मांगे। लेकिन ये डाक्टर साहब की मास्टरी है कि वे बिना बीन के उनके नथुनों पर नकेल कसने की कवायद में जुटे हैं। विषैले जानवर भी हुए तो क्या हुआ, हैं तो जीव ही। उनमें भी वैसी ही जान है जैसी हम-आप में! सरदार जी आप कमाल हैं और आपका विषैले जानवरों के प्रति प्रेम ने तो मेनका गांधी को भी पीछे छोड दिया।
सुना है कि इसकी प्रेरणा उन्हें तब मिली थी जब वे बीते साल जम्मू आए थे। उन्हें किसी ने बताया था कि राजा जाम्बू लोचन शासनकाल में शेर और बकरी एक ही घाट पर पानी पीते थे। उस जमाने में उन्होंने दोस्ती और गंगा-जमुनी तहजीब की कमाल की मिसाल पेश की। वे कितने महान राजा और उनकी प्रजा कितनी महान रही होगी इस बात का अंदाजा भर लगाया जा सकता है? भाजपा की रामराज की परिकल्पना तो इसके आगे अत्यंत बौनी है।
यह सब सुनने के बाद डाक्टर मनमोहन सिंह जी के दिमाग की घंटी भी बज गई। सुना है उसी दिन से उन्होंने ठान लिया था कि वे विषैले जानवरों, धूर्तानंदों आतंकवादियों व देशद्रोहियों को इंसानियत का पाठ पढाएंगे। विषैले नाग काट भी खाएं, धूर्त मार भी डालें तब भी वे कभी उफ तक नहीं करेंगे। उन्होंने शपथ ली है कि वो अपने मिशन 'दुर्जन से सज्जन' को किसी भी कीमत पर नहीं रोकेंगे। इसके लिए उन्हें चाहे कितने भी बेगुनाहों की जिंदगी से खेलना पडे, उन्होंने दिल पर पत्थर बांध लिया है कि उसे पसीजने नहीं देंगे। अरे भई! सीधी-सादी बात है वो डाक्टर भी क्या डाक्टर जिसके पावन हाथों से दो-चार मरीज यमराज के द्वार न पहुंचें। अब अपने डाक्टर साहब की डाक्टरी की फील्ड बहुत बडी है। पूरा देश उनके लिए लेबोरेटरी है और 1 अरब से ज्यादा लोगों के ऊपर उनके प्रेक्टिकल चल रहे हैं। सच पूछिए तो महात्मा गांधी का अगर कोई सच्चा भक्त इस दौर में है तो बिना शक अपने डाक्टर साहब हैं। गांधी जी की ऐसी कौन सी नीति और सिध्दांत है जिसका उन्होंने अक्षरश: पालन न किया हो? बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो, बुरा मत बोलो इन सभी को मनमोहन सिंह जी ने न केवल कंठस्थ किया बल्कि सुबह-शाम उसका अनुपालन डटकर करते हैं। उन्होंने इतने बसंत देख लिए हैं कि अब उन्हें सब हरा ही हरा नजर आने लगा है। कुछ बुरा न दिखे इसके लिए बरसों पहले उन्होंने इंतजाम कर लिया और चश्मा चढा लिया। जैसे-जैसे उन्हें तरक्की मिलती रही चश्मे का नंबर बढता गया। अब राम जाने आजकल वो कौन से नंबर के चश्मे से दुनिया देख रहे हैं। पता नहीं भाजपाई आतंकवाद को लेकर क्यों चिल्लाते हैं? शायद उन्हें इस बात का इल्म नहीं कि डा. साहब को कुछ सुनाई देने वाला नहीं है। बात न सुनने के लिए उन्हें कानों में रूई डालने की जरूरत नहीं है क्योंकि सोनिया जी ने उन्हें अभय दान दिया हुआ है। बेगुनाहों का लहू लाख बहे और लाखों जुल्म हों, उनकी चीखों-चित्कार की क्या मजाल जो बिना इजाजत उनके कानों के दरवाजे पर भी फटक सके।
डाक्टर साहब की जुबान का तो क्या कहना! जब किसी से कुछ नहीं कहना, तो क्या भला कहना, क्या बुरा कहना? उनकी इस आदत का तो अपना 10 जनपथ भी मुरीद है। महंगाई चाहे लोगों की तेहरवीं मनाने को तैयार हो लेकिन अपने नाम के अनुरूप मनमोहन सिंह ने सोनिया जी के मन को पिछले साढे चार सालों से मोहपाश में तो बांधा ही है। इन सबके बावजूद उम्र के आखिरी पडाव में डाक्टर साहब की नई डिग्री के प्रति ललक काबिलेतारीफ है। विषैलों सांपों को काबू करने के गुर सीखने के लिए आजकल वे अमरीका गए हुए हैं। भारत में उन्हें कोई गुरु गोरखनाथ तो नहीं मिला। फिलहाल वो जार्ज बुश के सानिध्य में हैं।
गुरुजी की कक्षा में एक और छात्र भी हैं जरदारी साहब! इनकी हिस्ट्री किसी मिस्ट्री से कम दिलचस्प नहीं है। दुनिया में भ्रष्टाचार के जितने भी रिकार्ड बने हैं उसमें इन महाशय का भी सराहनीय योगदान है। पाकिस्तान का बंटाधार करने में उनकी तरफ से कोई कोर-कसर नहीं रही। दोनों अपने छोटे बिगडैल भैया आतंकवादी को मनाने में जुटे हैं। कहा जा रहा है कि युवा खून है भटक गया है। अगर नासूर लग जाए तो अंग को काटा जाता है, लेकिन भई ये तो दिल का मामला है। अगर वोट पर चोट की तो बूढा हार्ट फेल हो सकता है न?
टिप्पणियाँ
samp or bicchu bhi shaayad jyaada acche honge aise logo se.
Achaa likha aapne, sehmat hu aapke vicharo se.
manuj mehta
www.merakamra.blogspot.com