हिमाचली शेर जम्मू-कश्मीर में ढेर


इन्द्र सिंह थापा
हिमाचल की राजनीति के जंगी पहलवान जम्मू-कश्मीर की धोबीपट राजनीति से हमेशा ही चित हुए हैं। कांग्रेस व भाजपा ने कई बार हिमाचल के दिग्गजों को प्रदेश प्रभारी बनाकर भेजा लेकिन वे अपना तेज नहीं छोड़ पाए। हिमाचल की राजनीति को सबसे ज्यादा गहराई से समझने वाले शांता कुमार से लेकर हिमाचल प्रदेश कांग्रेस के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष व बुजुर्ग नेता सतमहाजन को उनकी पार्टियों ने जम्मू-कश्मीर की कई बार कमान सौंपी। शांता कुमार तो अभी भी प्रदेश भाजपा के प्रभारी हैं। लेकिन ये दोनों नेता हिमाचल जैसा जादुई प्रदर्शन यहां नहीं कर पाए।
भाजपा में शांता कुमार को दूरदर्शी नेताओं में से एक माना जाता है लेकिन उनकी नीतियां जम्मू-कश्मीर में असफल रही हैं। उनकी नीतियों के असफल रहने का कारण जम्मू-कश्मीर की राजनीति को न समझ पाना व कार्यकर्ताओं तथा नेताओं पर अपनी पैठ न बिठा पाना भी है। शांता कुमार को एक राजनीतिक चरित्र वाला नेता माना जाता है। वे अपनी नीतियों को सख्ती से लागू करने में विश्वास करते रहे हैं। माना जाता है कि उनके रुखे स्वभाव के चलते वे जम्मू-कश्मीर में भाजपा कार्यकर्ताओं से दूरी को खत्म नहीं कर पाए हैं। आम कार्यकर्ता उनसे दूरी बनाए रखना ज्यादा पसंद कर रहा है। सख्त व स्पष्ट नीतियों का खमियाजा शांता कुमार को भुगतना पडा है। उनके मुख्यमंत्रित्व काल में काम नहीं वेतन नहीं कानून लागू होने के कारण कर्मचारी इतने उग्र हुए कि प्रदेश भर में जमकर प्रदर्शन हुए लेकिन शांता नहीं माने। कर्मचारियों की नाराजगी के कारण वे दुबारा मुख्यमंत्री नहीं बन पाए।
यह भी सत्य है कि उन प्रदेश प्रभारियों को ही महत्व मिलता रहा है जिनका केंद्र में प्रभावशाली हस्तक्षेप हो। चूंकि हिमाचल से लोकसभा की सिर्फ 4 सीटें हैं इस कारण यहां के नेताओं का वेट औरों से काफी कम आंका जाता है।

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