बेबे के हाथ की रोटियां खानी हैं

सतीश मिश्र

फांसी का दिन आ पहुंचा था। भगत सिंह अपनी फांसी की कोठरी में निश्चिंत होकर पढ़ाई में मग्न थे। जेलर मिलने के लिए पहुंचा, उसने भगत सिंह से पूछा कि आप की कोई आखिरी इच्छा हो तो बताइए। भगत सिंह ने मुस्कराते हुए कहा कि मेरी पहली और आखिरी इच्छा तो भारत की आजादी है जो शायद आप पूरी नहीं करना चाहेंगे। परंतु आज बेबे के हाथ की रोटियां खाने को बहुत दिल कर रहा है। अगर आप इसे पूरा कर सकें तो बहुत खुशी होगी। जेलर ने सोचते हुए कहा कि सरदार जी आपकी माता जी तो यहां से बहुत दूर रहती हैं, इस समय यह कैसे संभव हो सकता है। भगत सिंह, मुस्कराते हुए बोले, नहीं नहीं आप गलत समझ रहे हैं, मैं अपनी मां की नहीं इनती बात कर रहा हूं। भगत सिंह का इशारा पास में ही खड़े तेलूराम की ओर था जो जेल में जमादार का काम करता था। जेलर और तेलूराम दोनों हैरान थे। भगत सिंह ने तेलूराम की ओर देखते हुए कहा कि जिस प्रकार मेरी गंदगी साफ करने का काम बचपन में मेरी मां करती थी वैसे ही इन्होंने जेल में वह काम किया है इसलिए एक प्रकार से यह मेरी बेबे जैसे ही हैं और मैं चाहता हूं कि इनके हाथ की बनी हुई रोटियां खाऊं।
थोड़ी देर बाद जब भगत सिंह तेलूराम के हाथ की बनी हुई रोटी प्रेम और स्वाद से खा रहे थे तो भावुकता में तेलूराम की आंखों से आंसू बह रहे थे। अपने क्रांतिकारी कामों के कारण पूरे विश्व को हैरान कर देने वाला भगत सिंह अपने समाज की विषमता को दूर करने के लिए कितना व्यवहारिक और सार्थक रास्ता इस देश की युवा पीढ़ी को दिखा रहा था।

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