भगत को जन्म यही माँ दे सकती थी

सतीश मिश्र
स्वतंत्रता की कीमत बहुत लोगों ने चुकाई है परंतु जो कीमत भगत सिंह की मां विद्यावती ने चुकाई, इसका हिसाब लगाना मुश्किल है। भगत सिंह को फांसी हो गई। यह सुनकर उन पर क्या बताती, उन्हीं के शब्दों में,''सुनते ही मेरा कलेजा टुकड़े-टुकड़े हो गया। भीतर से आंसुओं का समुद्र उमड़ता, पर आंखों तक आते आते मेरी बुध्दि उसे रोक देती'। हंसते हंसते प्राण न्यौछावर करने वाले मेरे बेटे भगत के कहे अंतिम शब्द मेरे कानों में बार बार गूंज रहे थे, बेबे जी, रोना मत। ऐसा न हो आप पागलों की तरह रोती फिरें, लोग क्या कहेंगे कि भगत सिंह की मां रो रही है, कलेजा मुंह को आने लगता, पर मैं भीतर ही भीतर घोलती रही उन आंसुओं को'
एक बेटा शहीद, दूसरे भी बार बार जेल जाते रहते। उस दर्द को सहने से क्या फांसी पर लटक जाना आसान नहीं है? एक बार भाषण देते हुए उन्होंने कहा था मेरे एक बेटे को तूने फांसी पर लटकाया, मेरे छोटे देवर सरदार स्वर्ण सिंह को जेल के अंदर अत्यधिक शारीरिक कष्ट पहुंचा कर तपेदिक का रोगी बनाया और इस दुनिया से विदा होने को मजबूर किया। मेरे दूसरे देवर सरदार अजीत सिंह को जलावतन होकर विदेशों में भटकना पड़ा और अब मेरे दो बेटों को बिना मुकद्दमा चलाए गिरफ्तार कर लिया है। क्या मैं इस सबसे डर गई? नहीं, मैं मिट जाऊंगी, पर झुकूंगी नहीं। मैं ब्रिटिश साम्राज्य को नई चुनौती देती हूं और दूसरे दो बेटों को भी देश सेवा के लिए पेश करती हूं। आओ जालिमों। अगर तुम्हारी हवस अभी पूरी नहींहुई तो इनको भी ले जाओ।

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