समझौते ने बोये अलगाव के बीज
राष्ट्रविरोधी जहर से पोषित हो रही हैं कश्मीर की नई-नवेली जडें
-इन्द्र सिंह थापा
केंद्र के नरम रुख, जम्मू की अनदेखी कर तुष्टिकरण व समझौतावादी नीति ने कश्मीर को अलगाव के रास्ते पर ला खडा कर दिया है। श्राइन बोर्ड को आबंटित 800 कनाल भूमि से कश्मीरियत को कोई खतरा नहीं था। भूमि हस्तांतरण का मसला इतना बडा नहीं था कि केंद्र व राज्य सरकार मुट्ठी भर लोगों के विरोध के आगे नतमस्तक होकर घुटने टेक देती। वोट बैंक के लिए कांग्रेस ने राष्ट्रहित को दांव पर लगा दिया। सरकार के झुक जाने से कश्मीर में फिर से अलगाव की बयार बहनी शुरू हो गई है।कश्मीर मसले पर मुसलमानों को नाराज न करने की नीति राष्ट्रीय एकता के लिए घातक सिध्द हो रही है, जिसके चलते कश्मीर विश्वविद्यालय में पढने वाले छात्रों के दिलों से राष्ट्र सम्मान व दिमाग से परीक्षा व प्रोफेसरों का डर निकल चुका है। इसी फेहरिस्त में कई छात्र अलगाव का बीज बोने में जुट गए हैं। सरकार द्वारा बाबा अमरनाथ यात्रा पर आने वाले श्रध्दालुओं की सुविधा के लिए बोर्ड को जो जमीन दी थी, जिसका पीडीपी ने विरोध किया। पाकिस्तानी टुकडाें पर पलने वाले अलगाववादी संगठनों ने भी खुलकर इसका समर्थन किया और विरोध में उतर आए। सांप्रदायिकता का नंगा नाच करने वाले इन संगठनों ने श्रीनगर में प्रदर्शन किए जिसमें छह लोग मारे भी गए। बेशक सरकार अलगाववादियों की नाजायज मांग के आगे झुक गई, लेकिन फिर भी बच नहीं पाई।
सरकार की बार-बार असंगत मांगों के आगे समझौते की नीति से लोगों में यह संदेश जा रहा है कि वे विरोध करके किसी भी मांग को मनवा सकते हैं। इससे घाटी में फिरकापरस्त व अलगाववादी ताकतें जडें ज़माने लगी हैं। इसका सबसे बडा उदाहरण घाटी में कुछ दिन पहले प्रवासी हिन्दुओं की नृशंस हत्या रही है। हमले में कई अमरनाथ यात्री भी घायल हुए।
बहुत से कश्मीरियों की नजर में भूमि विवाद में सरकार की हार उनकी ऐतिहासिक जीत है। सरकार की हार पर तंज कसते हुए कई नवयुवकों को सडक़ व गलियों में सुना जा सकते हैं। उनके बेखौफ हौसलों का अंदाजा 27 वर्षीय अमीन के इस बात से लगाया जा सकता है। वह कहता है 'मैं ऐसा महसूस कर रहा हूं जैसे मैं स्वतंत्र हो गया हूं'। लोगों को सडक़ पर यह कहते हुए भी सुना जा सकता है कि जब वे भारत से अलग हो जाएंगे तब उन्हें सुकून मिलेगा।कश्मीरी इस बात को भूल रहे हैं कि पिछले दो दशकों से भाडे क़े पाकिस्तानी उग्रवादियों ने ही कश्मीरियत को लूटा है। आतंकवादियों ने जहां कश्मीरी पंडितों को मार-मारकर घाटी से भगाया, वहीं नौजवान मुस्लिम युवकों को गुमराह कर आतंकवादी बना डाला। उग्रवादियों की बंदूकों व बमों ने हिन्दुओं के साथ-साथ हजारों मुसलमानों को भी मौत के घाट उतारा। कइयों का अपहरण किया और उन्हें भयंकर यातनाएं दी गईं। उग्रवाद ने घाटी को न केवल छलनी किया, बल्कि उसकी खूबसूरती को भी जमकर लूटा व तहस-नहस किया। भारत ने पाकिस्तान से बहुत बार समझौता वार्ताएं कीं, लेकिन वह हर बार पीठ के पीछे छुरा घोंपता रहा।
घाटी में पाक प्रायोजित आतंकवाद दो स्तरों पर चलाया जा रहा है। एक लोगों के दिलों में दहशत भरी जा रही है, दूसरे राजनीतिक स्तर पर कुछेक सामाजिक संगठन चलाए गए हैं, जो अलगाव की विचारधारा का जहर समाज में फैला रहे हैं। विचारधारा के जहर से पोषित नौजवानों की आंखों पर अलगावाद व भारत विरोधी पट्टी बांध दी गई है।
'हम विवाद की उपज हैं और यह हमारे दिलो-दिमाग में बस गया है'। ये शब्द 22 वर्षीय मोहम्मद लोन के हैं। उसका मानना है कि भारत हमारा विरोधी है। भारत को स्वयं से अलग करने की विचारधारा पूरे समाज में जहर फैला रही है। कितनी हैरानी की बात है कि इस तरह की बातें शिक्षा व संस्कार के मंदिर कश्मीरी विश्वविद्यालय में होना आम बात हो गई हैं।
इस तरह के बातें भले ही आम हिन्दुस्तानी के लिए गहरा धक्का हों, लेकिन नेताओं के लिए शायद यह कोई बडी बात नहीं है। 23 वर्षीया मरूशा मुजफ्फर का बयान तो और भी हैरानीजनक है। उसका कहना है कि 'इस प्रकार के माहौल में हम नहीं रह सकते। बदलाव जरूरी है। आप प्रशासित भूमि पर नहीं रह सकते।' वह अपने युवा दोस्तों से कहती है कि उनके पास उत्साह व ऊर्जा है, वे ऐसा करें। उसका मानना है कि भूमि विवाद पर हुए प्रदर्शन केवल प्रतीकात्मक थे। वे नहीं चाहते कि हिन्दू यहां पर रहें। अलगाववादियों ने लोगों के दिलों में यह भावना भर दी थी कि अगर भूमि बोर्ड को दी गई तो उस पर हिन्दू रहने लगेंगे, जिससे मुस्लिम संस्कृति खतरे में पड ज़ाएगी। पर्यावरण को तो केवल विरोध के लिए राजनीतिक मुखौटा बनाया गया था। राजनीति की रोटियां सेंकने के लिए पीडीपी द्वारा किए गए विरोध ने जो ज्वाला भडक़ाई उससे न केवल कश्मीर जला अब जम्मू भी धधक रहा है। वोट की राजनीति के लिए दिए नेताओं के बयान ने इसमें घी डालकर उसे और भडक़ाया है। ज्वाला को शांत कर शासन व प्रशासन को अतीत में की गई भयंकर भूलों व तुष्टिकरण की नीति से बाज आना चाहिए, वरना कश्मीर व जम्मू के भविष्य को बहुत कुछ देखना व भोगना होगा।
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