राष्ट्रवादी विचारक को राष्ट्रभक्तों का अंतिम प्रणाम
विजय शंकर वाजपेयी सरीखे विप्लवी व्यक्तित्व ने 'काल' के समक्ष इतना शांत और मौन समर्पण इतनी सहजता के साथ कैसे कर दिया? यह प्रश्न जीवन भर विचलित करता रहेगा। संयोग से उनके जीवन के अत्यंत विषम और कठिन दौर में उनके घनिष्ठ सम्पर्क उनके असीम स्नेह के वटवृक्ष की विलक्षण छाया का परम सौभाग्य प्राप्त करने वाले कुछ सौभाग्य शाली पत्रकार पथिकों में से एक मैं भी रहा हूं। राष्ट्रप्रेम की प्रचण्ड आग में दहकते उनके असाधारण व्यक्तित्व में सिमटा उनका अपार सौन्दर्य उनके अर्न्त की अग्नि से सदा दमकता रहता था। व्यक्ति को आरपार भेद जाने वाली उनका तीखी दृष्टि उनके भीतर सदा खौलते रहने वाले वैचारिक तेजाब का ही प्रतिनिधित्व करती थीं। सच कहने, उस पर अड़े रहने और उसके लिए कोई भी मूल्य चुकाने को आतुर रहने की उनकी पूजनीय प्रवृत्ति के एक उदाहरण का उल्लेख यहां करना चाहूंगा। राष्ट्रद्रोहियों के खिलाफ 'विचार मीमांसा' द्वारा बरसाए जाने वाले कहर से तिलमिला उठे थे आतंकी विषधर। परिणाम स्वरूप उन्हें जून 2006 में सिमी की तरफ से एक पत्र मध्यप्रदेश के रतलाम जिले से भेजा गया था। इस पत्र में उन्हें सुधर जाने का सुझाव ...