क्या सचिन से जलते हैं धोनी?

सिडनी में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ खेले गए पहले फाइनल में सचिन ने 117 रनों की जो नाबाद पारी खेली, उसकी महानता हर देखने वाला जानता है। मैच के बाद जब सचिन का इंटरव्यू लिया गया तो सचिन ने अपने बारे में पूछे गए सवाल के जवाब में नए खिलाड़ी रोहित शर्मा की प्रशंसा के पुल बांध दिए।
यह सचिन का बड़प्पन है और टीम के प्रति उनका स्नेह है कि वे बखूबी समझते हैं कि नए खिलाड़ियों को कैसे बढ़ावा दिया जाए, कि कैसे अपनी महानता की छाया से उनके अच्छे प्रदर्शन को धुंधला न होने दिया जाए।
और दूसरी तरफ हैं एक दिवसीय टीम के कप्तान धोनी। जब उनसे सचिन की पारी के बारे में पूछा गया तो टाल-मटोल भरे अंदाज में दो-चार बातें बोलने के बाद धोनी ने कहा “लेकिन हमें नहीं भूलना चाहिए कि अभी दो मैच और बाकी हैं।”तो धोनी यह कहना चाहते थे कि एक मैच में खेल लिया तो क्या, अगले दो मैचों में भी अच्छा खेलें सचिन तो जाने?ऎसी टिप्पणी करना धोनी का छोटापन था, दिल की जलन थी।
धोनी शायद नहीं सहन कर पाते हैं कि उनके अलावा और कोई प्रशंसा का पात्र न बने, कोई और भारतीय क्रिकेट टीम का सिरमौर बने।
इसीलिए पहले उन्होंने सौरव गांगुली को टीम से निकलवाया और फिर सचिन के खिलाफ कड़वी बातें कहीं और अब सचिन की तारीफ तक उनसे बर्दाश्त नहीं हो रही है।
सचिन इस बात को बखूबी समझते हैं इसीलिए जीत कर वापस लौटते समय भी उनके चेहरे पर दुख की छाया थी, खुशी की मुस्कान नहीं। और इसीलिए वे जीत कर धोनी के साथ पेवेलियन वापस नहीं लौटे बल्कि धोनी से अलग, अकेले ही मैदान से लौटे।
एक अंग्रेजी फिल्म में संवाद सुना था: “ मैं हमेशा इसलिए जीतता रहा क्योंकि मैं हमेशा अपनी जीत के बारे में सोचता रहा। तुम हमेशा इसलिए हारते रहे क्योंकि तुम हमेशा मेरी हार के बारे में सोचते रहे।”
यही हाल धोनी का भी होगा।

तो फिर बिंदास हो कर खेलो और बिंदास लिखो!

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