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जुलाई, 2008 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

करार पर सब बेकरार

परमाणु करार ने देश के दो निठल्ली प्रजातियों को व्यस्त रहने का मौका दे दिया है। हाशिए पर पड़े नेता और कम-दिमाग टीवी चैनल। नेता एक –दूसरे से मिल रहे हैं और टीवी चैनल ब्रेकिंग न्यूज दे रहे हैं “फलाना नेता ढिकाना नेता से मिले।” सुबह से शाम तक हर कोई एक-दूसरे से मिल रहा है और उसकी “टूटती खबर” आ रही है। भले ही नेता यह कहने के लिए मिल रहे हों “अरे, आप अभी तक जिंदा हैं?!”, खबरिया चैनल हर मुलाकात को परामाणु करार से जोड़ रहे हैं। अमर सिंह भी बड़े दिन बाद राजनीतिक विषय पर खबर में आए, वर्ना “बड़े भैया” के साथ फिल्मी समारोहों तक ही सीमित रह गए थे। अच्छा है, देश को क्रिकेट के अलावा कुछ तो और मिला व्यस्त रहने के लिए।

जाने तू..”: क्या बकवास फिल्म है!

जिस फिल्म में कहानी ही नहीं हो आप उसे कैसी फिल्म कहेंगे? इस साल की सबसे चर्चित फिल्मों में से एक “ जाने तू या जाने ना” जैसी फिल्म को देख कर यकीन नहीं होता कि यह 2008 जैसे समय में बनी फिल्म है, यकीन नहीं होता कि आमिर खान ने बिना स्क्रिप्ट देखे फिल्म बनाने की हामी भरी होगी, यकीन नहीं होता कि अपने भांजे के लिए पहली ही फिल्म आमिर ने बिना कहानी के बनाने का फैसला किया होगा। जिस फिल्म में पहले पंद्रह मिनट नायिका की बिल्ली मर जाने की शोकसभा और उस पर गाना गाने में बीतें, जिस फिल्म में इंटरवल तक कोई कहानी ही नहीं हो और जिस फिल्म में इंटरवल के बाद नायक-नायिका के अलावा दुनिया भर के पात्रों की कहानियां बताई जाने लगें, उस फिल्म को आप कैसे आमिर खान प्रोडक्शन की फिल्म मान सकते हैं? फिल्म में हीरो-हीरोइनों के चार दोस्तों को उन दोनों को खुश देख कर खुश होने के सिवा कोई काम ही नहीं है (क्या “ सैड लाइफ” है), हीरो-हीरोइन की ज़िंदगी में खुश रहने के सिवा कोई काम नहीं है (पढ़ाई खत्म हो गई, नौकरी की किसी को याद भी नहीं आती, लगता है “कोमा” में चले गए हैं सभी)। ये कौन से जमाने की पीढ़ी है? (राजेन्द्र कुमार की?) फिल्...