मुखौटों से मुक्त हों तो जीवन का आनंद जानें
रूटीन के जीवन को भी हम ठीक से नहीं जी पा रहे तो इसलिए कि हमने जाने कितने मुखौटे लगा रखे हैं। घर में भी हम अधिकारी वाले मुखौटे से मुक्त नहीं हो पाते। कुछ देर के लिए ही सही इन मुखौटों को उतार कर देखें, जो अनुभव मिलेगा वह सुखदायी ही होगा। कस्तूरी मृग की तरह हम सब इसी सुख की तलाश में जिंदगी भर भटकते रहते हैं। माया-मोह के मुखौटों से मुक्ति की बात जब तक समझ आती है तब तक किराए का मकान खाली करने का वक्त आ जाता है। रोज की तरह मॉर्निंग वाक से लौटते वक्त मैं रिज मैदान पर हॉकर से पेपर लेने के लिए रुका। पेपर की थप्पियां तो जमी हुई थी लेकिन भगवान दास चौधरी का पता नहीं था। मैंने कुछ पल इंतजार करना ठीक समझा। इसी बीच कंधे पर सफरी झोला टांगे एक सज्जन आए और दो पेपर उठाते हुए मेरी तरफ 10 रुपए का नोट बढ़ा दिया। मैंने एक पल सोचा कि उन्हें स्पष्ट कर दूं कि मैं भी आप ही की तरह ग्राहक हूं, फिर इरादा बदल दिया। छुट्टे की समस्या बताते हुए उन्हें एक पेपर और थमा दिया। इसी बीच एक और ग्राहक आ गए। यह सिलसिला करीब आधे घ्ंाटे चला। जब चौधरी जी लौटे तो मुझे दुकान संभालते देख आश्चर्य व्यक्त करने के साथ ही धन्यवाद की झड़ी...