जिंदगी के साल कम होते जा रहे हैं और हम हैं कि अपने में ही खोते जा रहे हैं। कब, किस मोड़ पर किसकी मदद लेना पड़ जाए,यह हकीकत भी हमारी समझ में न आए। प्रेम के दो मीठे बोल, धन्यवाद का एक शब्द बोलने में हमारी जेब का एक धेला खर्च नहीं होता लेकिन हम यहां भी कंजूस बने रहते हैं, जैसे शब्दों को ज्वैलर्स की दुकान से तोले के भाव खरीद कर लाए हों। हां जब किसी की आलोचना करने का अवसर हाथ लग जाए तो इन्हीं शब्दों को पानी की फिजूलखर्ची की तरह बहाते रहते हैं। जाने क्यों मुझे बैंक संबंधी कामकाज बेहद तनाव भरा एवं चुनौतीपूर्ण लगता है। शायद यही कारण है कि जब किसी नई बैंक में काम पड़ता है तो मैं इस सकारात्मक विचार के साथ बैंक में प्रवेश करता हूं कि कोई मददगार जरूर मिल जाएगा। माल रोड स्थित पीएनबी की शाखा में एकाउंट खुलवाने के लिए गया तो वहां पदस्थ मुकेश भटनागर मेरे लिए खुदाई खिदमतगार ही साबित हुए। कोई आपके लिए मददगार साबित हो तो क्या वह धन्यवाद का भी पात्र नहीं होता। मुझसे यह भूल हुई, लेकिन कुछ पल बाद ही मैंने सुधार कर लिया। तनख्वाह के बदले सेवा देना किसी भी शासकीय, अशासकीय कर्मचारी का काम है। काम के बदले म...